वास्तविकता का अवलोकन: जैसी वह है, न कि जैसे हम हैं

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हम स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं—पहले इसलिए, क्योंकि हम विश्वप्रसिद्ध परम पूज्य आचार्य श्री सुशील कुमार जी महाराज के प्रधान-शिष्य, श्री विवेक मुनि जी महाराज के संपर्क आएँ, जो आचार्य सुशील मुनि मिशन के संस्थापक-अध्यक्ष, हमारे पूज्य गुरुदेव और हमारे एक मित्र-दार्शनिक हैं; और फिर इसलिए—क्योंकि उन्होंने हमें उस तकनीक से परिचित कराया जिसे स्वयं बुद्ध ने सिखाया—एक ऐसी साधना जिसने हमारी जीवन-यात्रा को गहराई से प्रभावित किया है।

पच्चीस शताब्दियों पूर्व, सिद्धार्थ गौतम ने मानव दुःख के मूल को समझने के उद्देश्य से एक आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ की। इस यात्रा के अंत में उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया और इसके पश्चात, अपने जीवन को इस मुक्ति के मार्ग को अन्य लोगों के साथ साझा करने के लिए समर्पित कर दिया। उनके उपदेश, विशेष रूप से विपश्यना नामक ध्यान तकनीक, हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गए हैं, जो हमें वास्तविकता को वैसा ही देखने के लिए मार्गदर्शन करते हैं जैसी वह वास्तव में है, और जीवन के संघर्षों के बीच हमें जागरूकता और शांति की एक गहरी भावना विकसित करने में मदद करते हैं।

कई आध्यात्मिक नेताओं के विपरीत, बुद्ध ने कभी स्वयं के, ईश्वर या दिव्य होने का दावा नहीं किया। उन्होंने स्वयं को एक साधारण मानव के रूप में माना, जिसने दुःख से मुक्ति का मार्ग खोजा। उनके उपदेश प्रारंभ में मौखिक रूप से प्रसारित किए गए थे और बहुत बाद में एक ग्रंथ में संकलित किए गए जिसे 'धम्मपद' कहा जाता है, जिसका अर्थ है—धर्म के चरणों में—जो जीवन के सार्वभौमिक नियमों का प्रतीक है। फिर, हम भाग्यशाली इसलिए भी हुए कि हमें इसकी एक प्रत प्राप्त हो सकी। बुद्ध ने सिखाया कि दुःख की उत्पत्ति तृष्णा, द्वेष और अज्ञानता से होती है—जो सभी हमारे भीतर से उत्पन्न होते हैं। उन्होंने यह तर्क प्रस्तुत किया कि केवल आत्ममंथन और अपनी प्रकृति की गहरी समझ से ही हम अपने मन की भ्रांतियों से ऊपर उठकर जीवन के मौलिक सत्यों का साक्षात्कार कर सकते हैं।

बुद्ध के शिक्षण का एक प्रमुख तत्व व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित था, जिसे उन्होंने वास्तविक ज्ञान का स्रोत माना। दूसरों से प्राप्त ज्ञान बौद्धिक समझ दे सकता है, लेकिन जब तक हम सत्य का स्वयं अनुभव नहीं करते, तब तक वह हमें परिवर्तित करने की शक्ति नहीं रखता। वास्तविक मुक्ति उधार ली गई बुद्धि से नहीं, बल्कि इसे अपने भीतर खोजने से प्राप्त होती है।

उनकी शिक्षाओं के विभिन्न अभिव्यक्तियों में से, बुद्ध का सबसे व्यावहारिक योगदान है प्राचीन ध्यान तकनीक जिसे विपश्यना भावना के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है "वास्तविकता के सच्चे स्वरूप की अंतर्दृष्टि।" 'पस्सना' शब्द का अर्थ है "देखना" और 'विपश्यना' का अर्थ है "गहराई से देखना" या "चीजों को जैसा वे वास्तव में हैं, वैसे देखना।" विपश्यना शारीरिक संवेदनाओं का बिना प्रतिक्रिया दिए निरीक्षण करने की एक विधि है, जो एक शांत और स्थिर जागरूकता को विकसित करती है, और यह जागरूकता हमें वास्तविकता की गहरी समझ की ओर ले जाती है।

बुद्ध ने संवेदनाओं के निरीक्षण के महत्व पर जोर दिया क्योंकि 'सतिपट्ठान सुत्त' के अनुसार, हम अपनी संवेदनाओं के माध्यम से ही वास्तविकता का अनुभव करते हैं। हमारी इंद्रियां वे द्वार हैं जिनके माध्यम से बाहरी दुनिया हमारे आंतरिक अनुभव को प्रभावित करती है। इसके अलावा, हमारा मन विचारों, भावनाओं और स्मृतियों का निर्माण करता है, जो हमारे जीवन की अवधारणा को समृद्ध और प्रभावित करती हैं। इस प्रकार, संवेदनाएँ हमारे भौतिक और मानसिक अनुभवों के बीच एक संगम के रूप में कार्य करती हैं। इन संवेदनाओं का अवलोकन करके, हम अपने मन का भी निरीक्षण कर सकते हैं और उसकी गहन समझ प्राप्त कर सकते हैं।

आधुनिक विज्ञान इस बात की पुष्टि करता है कि हर क्रिया या अनुभव हमारे शरीर के भीतर जैव रासायनिक प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करता है, जिनमें से अधिकांश हमारी चेतन जागरूकता के स्तर से नीचे की सतह पर होती हैं। विपश्यना हमारी जागरूकता को मजबूत करती है, जिससे हमें सबसे सूक्ष्म संवेदनाओं का भी पता लगाने में मदद मिलती है और यह समझने में मदद मिलती है कि वे लगातार उत्पन्न होती हैं और लुप्त हो जाती हैं। यह अनुभव 'अनिच्च' या अनित्य की समझ की शुरुआत है, जो बुद्ध के उपदेशों का एक मूल आधार है।

बुद्ध ने यह बताया कि मन चार चरणों में संचालित होता है: चेतना, धारणा, अनुभव और प्रतिक्रिया। सबसे पहले, चेतना तब उत्पन्न होती है जब मन किसी उत्तेजना से संपर्क करता है। इसके बाद धारणा होती है, जब मन उस उत्तेजना को पहचानता है या उसका विश्लेषण करता है। इसके पश्चात एक अनुभव उत्पन्न होता है, जो अंततः एक प्रतिक्रिया की ओर ले जाता है। आमतौर पर, ये प्रक्रियाएं इतनी तेजी से होती हैं कि हमें केवल प्रारंभिक उत्तेजना और अंतिम प्रतिक्रिया का ही पता होता है। विपश्यना व्यक्ति की जागरूकता को तेज करती है, जिससे साधक को प्रत्येक चरण, विशेषतः धारणा और अनुभव की प्रक्रियाओं को पहचानने की क्षमता मिलती है। बढ़ी हुई जागरूकता के साथ, व्यक्ति अनुभवों को शांति से देख सकता है बजाय इसके कि तत्काल प्रतिक्रिया दे।

स्वचालित प्रतिक्रियाओं से अलग रहने की यह क्षमता विपश्यना को अन्य ध्यान तकनीकों से भिन्न बनाती है। जबकि कुछ अभ्यास मानसिक ध्यान को केंद्रित करने के लिए मंत्र, ध्यान चित्रण या जप का उपयोग करते हैं, वे अक्सर केवल अस्थायी शांति या आनंद की स्थिति उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं। हालांकि, ये दुःख के अंतर्निहित कारणों को सीधे संबोधित नहीं करते हैं। इसके विपरीत, विपश्यना स्थायी परिवर्तन लाने का प्रयास करती है, जिससे साधक अपने अनुभवों को अपनी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से अलग कर सकते हैं। पीड़ा और सुख दोनों का समभाव से अवलोकन करके, विपश्यना साधकों को दुःख के बंधनों से मुक्ति पाने में सहायता करती है।

सभी प्रकार की संवेदनाओं के सामने संतुलन और स्थिरता बनाए रखने का अभ्यास—चाहे वे सुखद, अप्रिय, या तटस्थ हों—व्यक्ति को धीरे-धीरे द्वेष, तृष्णा और अज्ञानता पर काबू पाने में सहायता करता है। अप्रिय संवेदनाओं का सामना करते समय शांति बनाए रखने से व्यक्ति द्वेष की प्रवृत्ति को कमजोर करता है। सुखद संवेदनाओं के प्रति आसक्ति के बिना प्रतिक्रिया देकर, वह तृष्णा को कम करता है। तटस्थ संवेदनाओं के प्रति ध्यान और समभाव बनाए रखने से व्यक्ति अज्ञानता को मिटाने की दिशा में अग्रसर होता है। यह प्रक्रिया शरीर के भीतर दुःख और पीड़ा की समाप्ति का प्रत्यक्ष अनुभव प्रस्तुत करती है। इस प्रकार, शरीर अनित्य की वास्तविकता का साक्षी बन जाता है।

कहा जाता है कि अपने शिष्यों के लिए निर्देशित बुद्ध के अंतिम शब्द थे—

"अण्डा दानी, भिक्खवे, अमन्तायामि वो, व्याधम्मा संखारा अप्पमादेन सम्पदेथा।"

"सभी संघटित वस्तुएँ अंततः नष्ट होती हैं। इस सत्य को समझने के लिए कठोर परिश्रम करें।" ये शब्द इस बात को उजागर करते हैं कि केवल विपश्यना के बारे में जान लेना या अनित्य के बारे में ज्ञान प्राप्त करना पर्याप्त नहीं है। वास्तविक परिवर्तन के लिए कठोर अभ्यास आवश्यक है। भले ही संकल्प मजबूत हो, कभी-कभी अवचेतन में दबे हुए संस्कारित प्रतिक्रियाएँ हमें पराजित कर सकती हैं। इसलिए, सच्चा समाधान गहन और निरंतर अभ्यास में निहित है, जिसमें ध्यान के साथ-साथ रोज़मर्रा के जीवन में जागरूकता और समभाव का विकास करना शामिल है।

अनुभवी साधकों के लिए, विपश्यना अनित्य की एक ठोस समझ प्रदान करती है, जो व्यक्तिगत अनुभवों की क्षणिक प्रकृति से परे सभी घटनाओं तक विस्तृत होती है, जिसमें आत्म-भावना भी शामिल है। यह गहरी समझ मुक्ति की कुंजी है। केवल मानव प्राणियों में इस गहन सत्य को समझने की क्षमता होती है। बुद्ध ने हमें दिखाया कि निरंतर प्रयास और कठोर अभ्यास के माध्यम से हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। उनके उपदेश इस बात का प्रमाण हैं कि हममें से प्रत्येक के भीतर अद्भुत क्षमता विद्यमान है। यदि हम इस अवसर को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो हमारी विकास और परिवर्तन की अपार संभावनाएँ व्यर्थ हो जाएँगी।

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